गाँव और दादा जी का प्यार - Heart Touching Story in Hindi

पहाड़ों की गूंज, दादा जी का प्यार और दादी के वीणा की तान। Heart Touching Story in Hindi। एक लड़के का सफर गाँव से शान तक।

May 10, 2024 - 18:18
 0
गाँव और दादा जी का प्यार - Heart Touching Story in Hindi
heart touching story in hindi

पहाड़ों की छाँव में बसा हुआ एक छोटा सा शांत गाँव था। वहाँ के रहने वाले राम सिंह, एक बूढ़े लकड़हारे किसान थे तथा उनकी पत्नी पार्वती कुछ साल पहले ही स्वर्ग सिधार गईं थीं। राम सिंह अकेले रहते थे, उनका इकलौता बेटा मोहन शहर में रहकर नौकरी करता था।

एक दिन मोहन का फोन आया। उसने बताया कि उसकी पत्नी सीता जल्द ही माँ बनने वाली हैं और वो चाहते हैं कि राम सिंह कुछ समय के लिए उनके पास शहर आ जाएँ। राम सिंह शहर जाने से कतराते थे, उन्हें पहाड़ों से मोह था और शहर का शोरगुल उन्हें बिलकुल भी पसंद नहीं था।

लेकिन मोहन के बार-बार कहने पर आखिरकार उन्होंने जाने का फैसला कर लिया। गाँव छोड़ने से पहले, एक शाम राम सिंह गाँव के मंदिर में बैठे हुए थे। उनके सामने बैठी थीं दादी अन्नपूर्णा, गाँव की सबसे बुज़ुर्ग औरत।

दादी अन्नपूर्णा ने राम सिंह को देखा और मुस्कुराईं। "राम सिंह," उन्होंने कहा, "शहर ज़्यादा मत रहना, तुम्हें पहाड़ों की याद आएगी।"

राम सिंह ने हल्के से मुस्कुराकर जवाब दिया "दादी, मोहन को बच्चा होने वाला है, उसकी मदद करनी है।"

दादी अन्नपूर्णा ने सिर हिलाया, "बच्चा खुशी की बात है, उसकी खुशी में जाना ज़रूरी है। पर ये मत भूलना, पहाड़ हमेशा तुम्हारा इंतज़ार करेंगे।"

राम सिंह ने दादी की बातों में हाँ मिलाया और शहर का रुख किया। मोहन और सीता ने उनका बहुत प्यार से स्वागत किया। कुछ महीनों बाद सीता ने एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया, जिसका नाम आयुष रखा। 

राम सिंह दादा बनकर बहुत खुश थे। उन्होंने छोटे से आयुष की देखभाल में सीता की पूरी मदद की।

इस बीच शहर की ज़िंदगी राम सिंह को बिलकुल रास नहीं आ रही थी। हर जगह का शोर, प्रदूषण, और भागदौड़ उन्हें परेशान करती थी। उन्हें गाँव की शांत हवा, पहाड़ों की खूबसूरती, और खेतों की खुशबू की याद आती थी।

एक रात, राम सिंह ने मोहन को बताया कि वो वापस गाँव जाना चाहते हैं। मोहन थोड़ा परेशान हुआ। सीता को भी राम सिंह की देखभाल की ज़रूरत थी, लेकिन राम सिंह अड़े रहे।

आखिरकार मोहन ने माना लिया। राम सिंह वापस गाँव चले आये। गाँव आते ही उन्हें ऐसा लगा जैसे वो सालों बाद वापस लौटे हों। पहाड़ों की हवा ने उन्हें गले लगा लिया।

दूसरे दिन सुबह राम सिंह मंदिर गए। वहाँ दादी अन्नपूर्णा बैठी हुई थीं। राम सिंह उनके पास बैठ गए और कहा, "दादी, मैं वापस आ गया।"

दादी अन्नपूर्णा मुस्कुराईं, "पहाड़ों ने तुम्हें बुला लिया, राम।"

कुछ देर बाद राम सिंह ने कहा, "दादी, सीता को बच्चे की देखभाल में थोड़ी दिक्कत होती है। मैं सोच रहा हूँ कि आयुष को कुछ समय के लिए गाँव ले आऊँ।"

दादी अन्नपूर्णा ने गौर से राम सिंह को देखा और कहा "बच्चा माँ के पास ही अच्छा रहेगा, राम सिंह। लेकिन तू हर हफ्ते शहर जाकर देख आ सकता है।"

राम सिंह ने दादी अन्नपूर्णा की बात मानी। हर हफ्ते एक बार वो शहर जाते, आयुष से मिलते, सीता और मोहन का हालचाल लेते और फिर वापस गाँव चले आते।

कुछ समय बाद, गाँव में स्कूल की छुट्टियाँ आ गईं। मोहन और सीता ने सोचा कि आयुष को कुछ समय के लिए राम सिंह के पास गाँव भेज दें। आयुष को गाँव जाना पसंद नहीं था। वो शहर की चकाचौंध में पला बढ़ा था। लेकिन फिर भी वो बेमन से गांव, अपने दादा जी के पास आ गया।

रात को खाना खाते समय राम सिंह ने आयुष से पूछा, "आयुष तुम्हें शहर ज्यादा अच्छा लगता है ना?"

आयुष ने नाक सिकोड़ते हुए कहा, "हाँ दादा, यहाँ तो कुछ भी नहीं है। सिर्फ पेड़-पौधे और पहाड़।"

राम सिंह हंस दिए। उन्होंने कहा, "आयुष, ये पहाड़ ही तो गाँव की असली खूबसूरती हैं। इन पहाड़ों में ही नदियाँ बहती हैं, खेत लहलहाते हैं, और ताज़ी हवा हमें ज़िंदगी देती है।"

अगले दिन, राम सिंह आयुष को खेतों में ले गए। उन्होंने आयुष को बताया कि किस तरह से फसलें उगाई जाती हैं, जानवरों की देखभाल कैसे की जाती है, और गाँव का जीवन कैसा होता है।

शुरुआत में तो आयुष को यह सब बोरिंग लगा, लेकिन धीरे-धीरे उसे मज़ा आने लगा। उसने मिट्टी में हाथ डाला, नदी में मछलियों को कूदते देखा, और पेड़ों पर चढ़कर आम तोड़ना सीखा।

एक शाम, राम सिंह आयुष को पहाड़ों पर ले गए। सूरज पहाड़ों के पीछे डूब रहा था और आसमान रंग-बिरंगा हो गया था। आयुष ने ऐसा नज़ारा पहले कभी नहीं देखा था।

पहाड़ों की चोटी पर पहुँचकर राम सिंह ने कहा, "आयुष, ये पहाड़ कभी नहीं बदलते। ये हमेशा से ऐसे ही खड़े हैं, सूरज को उगते और डूबते हुए देखते हैं। ये  हमें ताकत देते हैं और हमें ये याद दिलाते हैं कि ज़िंदगी कितनी खूबसूरत है।"

आयुष ने चारों ओर देखा, उसने महसूस किया कि राम सिंह की बातों में सच्चाई है। पहाड़ों की खामोशी में उसे एक अलग तरह की शांति मिली, एक ऐसा सुकून जो शहर की चकाचौंध में नहीं मिल सकता था।

उस रात, सोते समय आयुष ने राम सिंह से पूछा, "दादा, आप मुझे एक कहानी सुनाएँगे?"

राम सिंह मुस्कुराए और कहने लगे, "बहुत समय पहले, इन पहाड़ों में एक राजकुमार रहता था........"

राम सिंह ने आयुष को एक जादुई कहानी सुनाई, पहाड़ों के राजाओं और रानियों, बात करने वाले जानवरों, और जादुई पेड़ों की कहानी। आयुष मंत्रमुग्ध होकर सुनता रहा।

अगले कुछ दिनों में, राम सिंह ने आयुष को कई कहानियाँ सुनाईं। उन्होंने उसे पहाड़ों के इतिहास के बारे में बताया, वहाँ रहने वाले पक्षियों और जानवरों के बारे में बताया, और गाँव के रहने वालों की कहानियाँ भी सुनाईं।

आयुष को गाँव का जीवन धीरे-धीरे पसंद आने लगा। उसने गाँव के बच्चों के साथ खेलना शुरू किया, नदी में नहाना सीखा, और राम सिंह की मदद से छोटे-मोटे काम भी सीखे।

एक हफ्ते बाद, मोहन और सीता आयुष को लेने गाँव आए। आयुष को जाते हुए बिलकुल भी अच्छा नहीं लगा। वो राम सिंह से मिलकर रोने लगा और गाँव में ही रहना चाहता था।

मोहन और सीता हैरान रह गए। उन्हें समझ नहीं आया कि कुछ ही समय में गाँव को बोरिंग मानने वाला आयुष अब यहीं रहना क्यों चाहता है।

राम सिंह ने उन्हें हँसते हुए बताया कि आयुष ने गाँव के बारे में बहुत कुछ सीखा है और पहाड़ों की खूबसूरती को महसूस किया है।

सीता ने आयुष को गले लगाया और कहा, "चलो बेटा, अब तुम थोड़ा बड़े हो गए हो। अगली बार जब छुट्टियाँ होंगी तो फिर दादा जी के पास आ जाना।"

आयुष ने राम सिंह से वादा किया कि वो जल्दी ही वापस आएगा। गाँव से जाते समय, आयुष ने पीछे मुड़कर देखा। राम सिंह पहाड़ों की चोटी पर खड़े थे और आयुष को अलविदा कह रहे थे। सूरज की किरणें उनकी आँखों में चमक रही थीं, शायद खुशी की या शायद आयुष के जल्दी वापस आने की उम्मीद की।

शहर वापसी के दौरान कार में बैठे आयुष को गाँव की याद आ रही थी। वो राम सिंह की कहानियों को याद कर रहा था, नदी में मछलियों को कूदते हुए देखना, और पेड़ों से आम तोड़ना। उसने शहर की चकाचौंध को अब पहले जैसा आकर्षक नहीं पाया।

heart touching story in hindi

घर पहुँचकर, सीता ने आयुष से पूछा, "कैसे थे दादा जी के पास कुछ दिन?"

आयुष थोड़ी देर चुप रहा, फिर उसने कहा, "मुझे गाँव पसंद आ गया माँ। वहाँ बहुत सारी चीज़ें सीखने को मिलीं।"

सीता मुस्कुराईं। उन्हें खुशी थी कि आयुष को गाँव का अनुभव अच्छा लगा।

कुछ दिनों बाद आयुष स्कूल में अपने दोस्तों को गाँव की कहानियाँ सुना रहा था। उसने उन्हें पहाड़ों की खूबसूरती, नदियों की स्वच्छता, और जानवरों के बारे में बताया। उसके दोस्त आयुष की बातें सुनकर हैरान रह गए। उन्हें यकीन नहीं हो रहा था कि शहर के बाहर भी ऐसी दुनिया मौजूद है।

वह साल बीत गया। आयुष को अब भी गाँव की याद आती थी। अगली गर्मियों की छुट्टियाँ आते ही वो सीता और मोहन से ज़िद करने लगा कि उसे वापस गाँव जाना है।

मोहन और सीता हैरान नहीं हुए। उन्हें पता था कि आयुष अब शहर के शोरगुल से थोड़ा ऊब चुका है। उन्होंने आयुष को वापस गाँव भेजने का फैसला किया।

इस बार, गाँव पहुँचते ही आयुष सीधा राम सिंह के पास दौड़ पड़ा। राम सिंह उसे गले लगाकर बहुत खुश हुए। उन्होंने आयुष से पूछा, "बेटा, इस बार भी बहुत कुछ सीखोगे?"

आयुष ने आँखों में चमक लाकर कहा, "हाँ दादा जी, इस बार मैं गाँव के बच्चों को भी शहर की कहानियाँ सुनाऊँगा!"

राम सिंह हँसे और कहा, "बहुत अच्छा! कहानियों का आदान-प्रदान तो होना ही चाहिए।"

कुछ ही दिनों में आयुष गाँव के बच्चों के साथ खेल रहा था और उन्हें शहर की इमारतों, ट्रैफिक जाम, और मॉलों के बारे में बता रहा था। गाँव के बच्चे भी आयुष की बातें सुनकर मंत्रमुग्ध थे।

उस शाम, राम सिंह ने आयुष और गाँव के बच्चों को एक साथ बैठाकर उन्हें गाँव के इतिहास और परंपराओं के बारे में बताया। उन्होंने गाँव के लोकगीत गाए और पुरानी कहावतें सुनाईं।

इस तरह, आयुष ने शहर और गाँव के बीच एक छोटा सा पुल बना दिया। उसने दोनों जगहों की कहानियाँ साझा कीं और सीखीं।

कुछ समय बाद, आयुष को वापस शहर जाना पड़ा। लेकिन इस बार वो गाँव को अलविदा कहते हुए दुखी नहीं था। उसके मन में पहाड़ों की गूंज और दादा का प्यार हमेशा के लिए बस गया था।

वो जानता था कि जब भी उसे शहर की चकाचौंध से थकावट महसूस होगी, वो वापस गाँव आ जाएगा, पहाड़ों की खामोशी में सुकून ढूंढने और नई कहानियाँ सीखने के लिए।

इस साल भी, आयुष गाँव लौटा। इस बार वो थोड़ा बड़ा हो चुका था। अब वो राम सिंह की सिर्फ कहानियाँ ही नहीं सुनता था, बल्कि उनकी खेती में भी मदद करता था। शाम को दादी अन्नपूर्णा के साथ बैठकर वो गाँव के पुराने किस्से सुनता था।

कुछ साल बीत गए। आयुष अब कॉलेज में पढ़ता था, लेकिन हर साल, गर्मियों की छुट्टियाँ आते ही आयुष शहर के कोलाहल को पीछे छोड़, गाँव की शरण में आ जाता। 

इस बार वो थोड़ा बड़ा हो चुका था। अब राम सिंह की कहानियाँ सुनने के अलावा, वो उनके साथ खेतों में भी कंधे से कंधा मिलाकर काम करता था। मिट्टी की खुशबू उसके हाथों में रच बसती थी, सूरज की किरणें उसकी ऊर्जा बढ़ाती थीं और शाम ढलते ही वो दादी अन्नपूर्णा के चरणों में बैठ जाता। दादी की झुर्रियों में छिपे किस्से सुनता, गाँव के इतिहास को जानता।

एक शाम, दादी अन्नपूर्णा ने आयुष को एक पुराना, चमड़े का बँधा हुआ थैला दिया। "यह तुम्हारे दादा का है," दादी ने धीमी आवाज़ में कहा, "उन्होंने इसे बहुत संभालकर रखा है। अब ये तुम्हारे पास रहेगा।"

आयुष ने उत्सुकता से थैला खोला। अंदर, रंगीन कपड़े से लिपटी हुई एक पुरानी वीणा थी। उसकी नक्काशी देखते ही उसकी आँखें चमक उठीं।

"यह वीणा तुम्हारे परदादा जी की थी," दादी ने बताया, "वे गाँव के मशहूर वीणा वादक थे। कहते हैं, उनकी धुनों में पहाड़ भी नाचते थे, नदियाँ भी ठहर जाती थीं।"

आयुष ने अपना हाथ वीणा के तारों पर फिराया। एक मधुर झंकार उठी, मानो वीणा भी उसके उत्साह को बयान कर रही हो।

उस रात, आयुष सो नहीं सका। उसके मन में सिर्फ वीणा थी। उसे सीखने की ललक थी। सुबह होते ही वो दौड़कर राम सिंह के पास गया।

राम सिंह आयुष की आँखों में चमक देखकर मुस्कुरा दिए। उन्होंने बताया कि गाँव में ही एक बूढ़े कलाकार रहते हैं, जो आज भी वीणा बजाते हैं।

आयुष देर न करता हुआ सीधे उस कलाकार के पास गया। बूढ़े कलाकार ने आयुष की लगन देखी तो उसे सिखाने के लिए तैयार हो गया।

कुछ दिनों की मेहनत के बाद, आयुष की उँगलियों से वीणा की मधुर धुनें निकलने लगीं। शाम के वक्त, पहाड़ों की गूंज के साथ उसकी धुनें गाँव में गूंजतीं। धीरे-धीरे, उसकी वीणा की ख्याति आस-पास के गाँवों तक फैल गई। लोग उसे सुनने के लिए आते।

एक दिन, शहर से आए लोगों ने आयुष की वीणा सुनी और उसे शहर में होने वाले संगीत समारोह में वीणा बजाने का निमंत्रण दिया। राम सिंह और दादी अन्नपूर्णा ने उसे प्रोत्साहित किया। आखिरकार, आयुष ने शहर जाने का फैसला किया।

शहर में संगीत समारोह में आयुष ने वीणा बजाई। उसकी धुनों ने सबको मंत्रमुग्ध कर दिया। तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा हॉल गूंज उठा। उस दिन, आयुष ने न सिर्फ अपनी कला का प्रदर्शन किया, बल्कि गाँव की संस्कृति को भी शहर के सामने ला खड़ा किया। समारोह के बाद, एक प्रसिद्ध संगीतकार आयुष के पास आया और बोला, "तुम्हारी प्रतिभा अद्भुत है! तुम मेरे साथ संगीत सीखना चाहोगे?"

आयुष खुशी से झूम उठा। उसने शहर में रहकर संगीत सीखने का फैसला किया, पर हर साल गर्मियों में वो गाँव लौटता, राम सिंह और दादी अन्नपूर्णा को गले लगाता, पहाड़ों की वीणा बनता और अपनी नई सीखी हुई धुनों से गाँव को गुंजायमान करता। इस तरह, पहाड़ों की गूंज और दादी का प्यार आयुष की कला का आधार बन गया।

What's Your Reaction?

like

dislike

love

funny

angry

sad

wow