Short Story in Hindi - आखिरी पड़ाव: एक पहाड़ी गाँव का रहस्य

कभी-कभी जिंदगी का रोमांच अंजान रास्तों पर चलने में होता है। यह Short story in hindi एक ऐसे गाँव की है, जहाँ एक अनोखी खोज पूरे गाँव की किस्मत बदल देती है।

Apr 28, 2024 - 15:19
May 15, 2024 - 13:52
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Short Story in Hindi - आखिरी पड़ाव: एक पहाड़ी गाँव का रहस्य
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सुबह-सुबह जब सूर्य की किरणें हिमालय की चोटियों को गुदगुदाने लगीं, तो उत्तराखंड के एक छोटे से पहाड़ी गाँव सोनपुर में हलचल शुरू हो गई। गाँव के मुखिया लाल बहादुर हर सुबह की तरह खेतों की ओर जा रहे थे। मगर आज उनका रास्ता थोड़ा बदल गया था।

कुछ साल पहले भारी बारिश हुई थी, जिसने गाँव के ऊपर बने एक पुराने मंदिर तक जाने वाले रास्ते को तहस-नहस कर दिया था। आज लाल बहादुर ने सोचा कि उसी रास्ते से होकर जाएँ, शायद मंदिर के हालचाल का पता चल सके। जैसे ही वे मंदिर के करीब पहुँचे, उनकी नजर एक चट्टान पर पड़ी जहाँ कुछ चमकीले पत्थर बिखरे हुए थे। ये पत्थर उन्होंने पहले कभी नहीं देखे थे।

लाल बहादुर गाँव के सबसे समझदार लोगों में से एक थे। उन्होंने उन पत्थरों को उठाया और ध्यान से देखा। पत्थर पारदर्शी थे और अंदर इंद्रधनुषी रंग छिपे हुए थे। उन्हें लगा कि ये कोई अनमोल रत्न हो सकते हैं। मगर उनके मन में एक सवाल भी उठा। ये पत्थर मंदिर के इतने करीब क्यों थे? क्या इनका कोई ऐतिहासिक महत्व था?

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उन्होंने तुरंत गाँववालों को इकट्ठा किया। सबने उन चमकीले पत्थरों को देखा और उनकी खूबसूरती पर मोहित हो गए। कुछ का कहना था कि उन्हें बेचकर गाँव का विकास किया जाए। गाँव के कुछ बुजुर्गों का मानना था कि शायद ये किसी देवी-देवता का प्रसाद होंगे, जिन्हें छेड़ना अशुभ हो सकता है।

लाल बहादुर ने सभी की बात सुनी। उनकी जिज्ञासा और भी बढ़ गई थी। उन्होंने बताया कि वह इन पत्थरों को शहर के एक भूविज्ञानी को दिखाएंगे। शायद वह इनके बारे में कुछ बता सके। साथ ही उन्होंने गाँव के बुजुर्गों को भरोसा दिलाया कि अगर ये पत्थर सचमुच किसी देवी-देवता से जुड़े होंगे तो वह उनका पूरा सम्मान बनाए रखेंगे।

शहर का सफर लंबा और थकाऊ था, लेकिन लाल बहादुर हार नहीं माने। भूविज्ञानी ने पत्थरों की जांच की और उनकी आँखें चमक उठीं। उन्होंने बताया कि ये दुर्लभ खनिज हैं जिनका उपयोग आधुनिक तकनीक में होता है। इनकी मांग अंतरराष्ट्रीय बाजार में बहुत है। मगर उनकी अगली बात ने लाल बहादुर को चौंका दिया।

"ये खनिज तो बहुत ही खास हैं," भूविज्ञानी ने कहा, "लेकिन इनके आसपास कोई खदान (mine) नहीं होनी चाहिए। ये किसी प्राचीन मंदिर या पूजा स्थल के नीचे पाए जाते हैं।"

लाल बहादुर को अचानक मंदिर का ख्याल आया। क्या ये पत्थर उसी मंदिर के आसपास से आए थे? कहीं गाँव के ऊपर हुआ भूस्खलन उस रहस्य को उजागर तो नहीं कर रहा था?

लाल बहादुर बेचैन होकर वापस गाँव लौटे। उन्होंने बुजुर्गों को भूविज्ञानी की बात बताई। गाँव में सन्नाटा छा गया। अगर ये पत्थर सचमुच किसी पूजा स्थल के नीचे दबे थे, तो उनका दोहन करना अशुभ हो सकता था।

लेकिन गाँव की हालत खस्ता थी। युवा पीढ़ी रोजगार की तलाश में शहरों की तरफ पलायन कर रही थी। स्कूल और अस्पताल जर्जर हालत में थे। क्या वे इस मौके को छोड़ सकते थे?

कुछ दिनों तक बहस चलती रही। अंततः लाल बहादुर ने एक सुझाव दिया। वे गाँव के लोगों को मंदिर तक ले गए और वहां खुदाई करने की अनुमति मांगी। अगर मंदिर के नीचे वाकई कोई खदान थी, तो वे उसे छेड़ेंगे नहीं बल्कि मंदिर का जीर्णोद्धार कराएंगे।

गाँववालों को उनका ये विचार पसंद आया। सावधानीपूर्वक खुदाई शुरू हुई। कई दिनों की मेहनत के बाद कुदाल एक कठोर सतह से टकराई। धीरे-धीरे खुदाई करते हुए उन्होंने पाया कि वह सतह दरअसल एक गुफा का द्वार था।

गुफा के अंदर जाने में डर लग रहा था, लेकिन लाल बहादुर ने हिम्मत जुटाई। उनके साथ कुछ युवक भी गए। गुफा के अंदर अंधेरा था इसलिए उन्होंने मशालें जलाईं। जैसे-जैसे वे आगे बढ़ते गए वैसे-वैसे गुफा की दीवारों पर अनजाने से चिन्ह उभरने लगे। ये चिन्ह हजारों साल पुराने लग रहे थे। उनमें किसी खोए हुए राजा के राज्य की कहानी बयां की गई थी।

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सबसे अंत में उन्हें एक विशाल हॉल मिला। हॉल के बीच में एक वेदी थी, जिस पर वही चमकीले पत्थर सजे हुए थे। ये पत्थर पूजा के लिए रखे गए थे, किसी खदान से निकालने के लिए नहीं।

यह खोज गाँववालों के लिए एक झटका थी। उन्हें एहसास हुआ कि लालच में वे एक पवित्र स्थान को अपवित्र करने वाले थे। उन्होंने माफी मांगी और गुफा के बाहर निकल आए।

इस घटना के बाद गाँववालों ने एकजुट होकर फैसला किया। उन्होंने खदान खोलने का विचार त्याग दिया। इसके बजाय उन्होंने पर्यटन विभाग से संपर्क किया। गुफा की दीवारों पर बने ये चिन्ह इतिहास प्रेमियों के लिए आकर्षण का केंद्र बन सकते थे। साथ ही उन्होंने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया।

कुछ ही समय में सोनपुर गाँव एक पर्यटन स्थल के रूप में प्रसिद्ध हो गया। गाँववालों को रोजगार के नए अवसर मिले। स्कूलों और अस्पतालों का जीर्णोद्धार हुआ। लाल बहादुर को गाँव के रक्षक के रूप में सम्मानित किया गया। उनकी जिज्ञासा और साहस ने गाँव को तरक्की की राह पर तो जरूर ले गया लेकिन ये तरक्की किसी पवित्र स्थान को नुकसान पहुँचाकर नहीं, बल्कि इतिहास और संस्कृति के सम्मान के साथ हासिल हुई।

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